तानसेन को तानसेन की उपाधि किसने दी ?

रामतनु पाण्डेय जी हाँ तानसेन का असली नाम यही था , जो की महाराजा अकबर के नव रत्नों में से एक थे । इनको तानसेन की उपाधि किसने दी इसके बारे मे जानने से पहले इनके जीवन की कुछ बातें जान लेते हैं ?

tansen ki upadhi kisne di

राजा मानसिंह तोमर की तत्कालीन रियासत ग्वालियर से लगभग 45 से 50 किलोमीटर के बीच की दूरी पर बेहट नाम के ग्राम में सन 1506 में श्री मकरंद पाडेय के घर एक बच्चे का जन्म हुआ ।

ऐसा कहा जाता है की यह कोई साधारण जन्म नहीं था यह आशीर्वाद था प्रसिद्ध फ़क़ीर हजरत मुहम्मद गौस  का । दरसल मकरन्द पांडेय के घर बहुत कि सन्ताने हुईं लेकिन उन सब की म्रत्यु अकाल ही होती गयी उसके उपरांत मकरन्द फ़क़ीर हजरत मुहम्मद गौस के पास गये और उनके आशिर्बाद स्वरूप तानसेन का जन्म हुआ ।

राजा मानसिंह तोमर संगीत प्रेमी थे और उनके प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत कला का विख्यात केन्द्र बना , जहां बैजूबावरा, कर्ण , महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गण एकत्र थे । तानसेन की शिक्षा भी इसी वातावरण में हुई . मानसिंह की म्रत्यु के बाद यहाँ सुर सम्राटों की मण्डली बिखरने लगी तो तानसेन व्रन्दावन चले गए और स्वामी हरिदास से शिक्षा प्राप्त कर रीवा के राजा रामचन्द्र के दरबार में गायक नियुक्त हुये ।

यहाँ उनकी गायकी के सब मुरीद हो गए उनकी प्रसिद्धि की आवाज जब अकबर के कानों में पहुचीं तो उन्होंने रामतनु पांडेय यानी की तानसेन को अपने दरबार बुलावा भेजा पर रीवा के राजा तानसेन को भेजने तैयार न हुए बात युद्ध तक पहुँच गयी एक छोटा युद्ध भी हुआ जिसमे अकबर हार गए इसके बाद अकबर ने पुनः बड़ी सेना के साथ आक्रमण करने कूच किया पर तानसेन के हस्तक्षेप के कारण यह युद्ध टल गया । अकबर के माफ़ीनामा के बाद रीवा के राजा तानसेन को भेजने तैयार हुए । तानसेन अकबर के दरबार में शोभायमान हुए और नवरत्नों में स्थान मिला

तानसेन के नाम को लेकर अनेक विद्वानों में एकमत नहीं है। कुछ का कहना है की यह तानसेन नाम की उपाधि उन्हें ग्वालियर के राजा विक्रमाजीत सिंह तोमर जो की मानसिंह तोमर की म्रत्यु के बाद राजा बने थे ने यह उपाधि उनदी थी, और किसी का मानना यह है की रीवा के राजा रामचंद्र सिंह ने यह उपाधि उन्हें दी थी। परन्तु आप सही उत्तर जानना चाहते है की तानसेन की उपाधि किसने दी ? तो इसका सही उत्तर है की यह उपाधि उन्हें अकबर के द्वारा मिली थी

तानसेन के जन्म दिनांक को लेकर भी एकराय नहीं है पर अबुलफ़ज्ल़ ने ‘अकबरनामा’ में उनकी मृत्यु की तारीख २६ अप्रैल, सन्‌ 1589 बताई गयी है। मृत्यु के समय लगभग उनकी उम्र 70 या 75 वर्ष थी । अत: उनका जन्म 1504 से 1509 ईसवी सन्‌ में हुआ होगा

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